The Best Of स्वभाव उपरम वादः की 5 आलोचना व उपयोगिता

स्वभाव उपरम वादः

self destruction concept

जायन्ते हेतुवैषम्याद्विषमा देह धातव: ।

हेतुसाम्यात् समास्तेषाम् स्वभावोपरमः सदा।।  चसू १६। २७ ॥

भावार्थ

1.जिन कारणों से धातुओं की पुष्टि होती है। यदि उन कारणों से विषमता हो जाती है, यदि कारणों में समता रहती है तो देह धातुओं में समता हो जाती है, इन धातुओं शांति (नाश) स्वभाव उपरम वादः(self destruction) से होती रहती है।

टीकाकार गङ्गाधर के मतानुसार देह धातु के स्वस्वधर्म, स्वस्वरूप से सदैव वृद्धि , पर इसके विनाश में स्वधर्म, स्वरूप के अभाव को कोई कारण नहीं है । यही स्वभाव उपरम वादः ही कारण मानते है।

2.क्षणिक विज्ञानवादी  का मत है कि जगत में जो भी पदार्थ है उन सब की प्रथम क्षण में उत्पति, दूसरे क्षण में स्थिति और तीसरे क्षण में विनाश हो जाता है।

आहार रस से जब उसका मधुर पाक होता है तब कफ, जब अम्ल रस की उत्पति( अम्न विदग्ध) तब पित, जब अन्न पचने के बाद कटु रस बनता है तब वात को उत्पति होती है । इस तरह कार्य करने से स्वभावतः जो धातुओं का नाश होता है उसकी पूर्ति होती रहती   है । उनके नाश में कोई कारण नहीं होता है।

3.wear and tear phenomenon

wear and tear phenomenon

वैज्ञानिक दृष्टि से संक्षेप में कहा जा सकता है शरीर में सदा wear phenomenon ( निमार्ण) में तो आहारदि से पूर्ति होने के कारण वह सहेतुक है।  परन्तु  tear phenomenon ( उपरम) सदा स्वभाविक गति रहा है वह अहेतुक है ।

चक्रपाणि ने उदाहरण दिये है।

4.दीपक के जलने में तैल व बति को कारण माना है। इसके बुझने में कोई कारण नहीं होता है क्योंकि वह स्वभावतः नष्ट होता है ।

5.जिस प्रकार से नित्य चलने वाले काल के नाश में उसका कोई कारण नहीं ज्ञात होता है। उसी प्रकार शीघ्रगामी होने से नष्ट भी हो जाता है । उस तरह भाव पदार्थ के नाश में कोई कारण नहीं है और उसमें कोई संस्कार भी नहीं किया जा सकता है ।

 

इससे कुछ शंकाए उत्पन्न होती है, अगर धातुओं की विषमता स्वभावतः से नाश हो जायेगा तो चिकित्सा का क्या प्रयोजन । 

 swabhava vada is accepted as a cause of origin or manifestation. In Charak samhita, swabhava is accepted in many places. In the present context, the doctrine of swabhava vada is taken as the logical foundation behind destruction.[11]

स्वभाव वाद को उत्पत्ति या अभिव्यक्ति के कारण के रूप में स्वीकार किया जाता है। चरक संहिता में स्वभाव को अनेक स्थानों पर स्वीकार किया गया है। वर्तमान संदर्भ में, स्वभाव वद के सिद्धांत को विनाश के पीछे तार्किक आधार के रूप में लिया जाता है। [11]

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